आज वचन दे

कच्चे धागे’ के ‘रक्षकों’
को सोचने पर मजबूर करेगी यह कविता
आज वचन दे
कलयुग में रहकर हम बहना
कैसे विश्वास जगाएं
हमारी रक्षा भाई करेगा
भाग्य कहां हम ऐसा पाएं
आज तुम राखी बंधवा लोगे
कल कहां निभाओगे
किसी नुक्कड़ पर देख बहनों को
क्या तुम सीटी नहीं बजाओगे
तुम्हारी ही करनी से देखो
हम बहने बदनाम हुई।
पाप तुम किये जाते हो
हमारी इज्जत नीलाम हुई
तुम करोहम सहते जाएं
कैसे-कबतक तुम्हें बचाएं
कलयुग में रहकर हम बहना
कैसे विश्वास जगाएं।
रक्षा बंधन को तुमने क्यों
समझ लिया है खेल
आज बंधवाओ कल फेक दो राखी
फिर कैसे होगा मेल
तुम ही नहीं समझ रहे
फिर मैं किसे समझाऊंगी
तुम ही मजनू बने फिरते हो।
कैसे अपनी लाज बचाऊंगी
तुम बदलोगे, आज वचन दो
या फिर छल कर जाओगे
मेरे हाथों राखी बंधवा कर
कलंक तो न लगाओगे ।
-Rajiv Mani

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