जाति है कि जाती नहीं!
जातिवाद की समस्या क्या है ? जातिवाद भारत की एक मुख्य सामाजिक समस्या माना जाता रहा है। जाति-व्यवस्था से ही समाज में ऊँच-नीच की भावना पैदा हुई। कर्म के आधार पर विकसित जाति-व्यवस्था जन्म के आधार को गले लगा ली जिसका समाज पर बुरा प्रभाव पड़ा। आज जातिवाद केवल सामाजिक समस्या ही नहीं राजनीतिक समस्या भी बन गई है, क्योंकि जाति और राजनीति दोनों एक-दूसरे को प्रभावित करने लगी हैं। रजनी कोठारी ने इस संबंध में अपना विचार व्यक्त करते हुए सही कहा है कि आज हम जातिविहीन राजनीति की कल्पना नहीं कर सकते। उनका कहना सही है कि राजनीति में जातीयता का इतना प्रभाव हो गया है कि ‘बेटी और वोट अपनी जाति को दो’ का प्रचलन किया गया है। “जातिवाद को खत्म किए बिना सामाजिक समानता और न्याय की कल्पना असंभव” जाति का उन्मूलन एक शक्तिशाली और विवादास्पद अवधारणा है, जो दशकों से भारत में सामाजिक न्याय और समानता पर चर्चा का केंद्र रहा है। दूरदर्शी समाज सुधारक डॉ. बी.आर. अम्बेडकर के अनुसार, जाति के विनाश की अवधारणा गहराई से स्थापित पदानुक्रमित सामाजिक संरचना को चुनौती देती है जिसने सदियों से भारतीय समाज को त्रस्त किया है। यह लेख जा